वन नेशन, वन इलेक्शन: एक देश, एक चुनाव का विचार और इसका भविष्य
भारत जैसे विशाल और लोकतांत्रिक देश में चुनाव एक बहुत बड़ी प्रक्रिया है। हर कुछ महीनों में किसी न किसी राज्य में या केंद्र शासित प्रदेश में चुनाव होते रहते हैं। इस लगातार चुनावी चक्र के मद्देनजर 'वन नेशन, वन इलेक्शन' या 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' का विचार समय-समय पर उठता रहा है। इस अवधारणा का सीधा मतलब है कि देश भर में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ या एक सिंक्रनाइज़्ड तरीके से कराए जाएं।
अवधारणा की पृष्ठभूमि:
आजादी के बाद शुरुआती दशकों में भारत में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव अधिकतर एक साथ ही होते थे। हालांकि, राज्यों में सरकारों के गिरने, मध्यावधि चुनावों और राष्ट्रपति शासन लागू होने के कारण यह चक्र टूट गया। वर्तमान में, लोकसभा और विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल अलग-अलग समय पर पूरा होता है, जिसके कारण लगभग हर साल देश के किसी न किसी हिस्से में चुनाव होते रहते हैं।
वन नेशन वन इलेक्शन के पक्ष में तर्क (संभावित लाभ):
चुनावी खर्च में कमी: बार-बार चुनाव कराने में केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों का भारी खर्च होता है। एक साथ चुनाव होने से इस खर्च में भारी कटौती की जा सकती है।
प्रशासनिक और सुरक्षा बलों पर बोझ कम: चुनावों के दौरान बड़ी संख्या में प्रशासनिक कर्मचारियों और सुरक्षा बलों की तैनाती करनी पड़ती है। एक साथ चुनाव होने से इन संसाधनों का बेहतर और एक बार में प्रभावी उपयोग हो सकेगा।
विकास कार्यों में बाधा कम: चुनावों के दौरान आदर्श आचार संहिता लागू हो जाती है, जिससे कई नई नीतियों और विकास परियोजनाओं की घोषणा या शुरुआत रुक जाती है। बार-बार चुनाव न होने से यह बाधा कम होगी और शासन अधिक निरंतरता के साथ चल सकेगा।
राजनीतिक ध्यान का बेहतर उपयोग: राजनीतिक दल और नेता लगातार चुनावी मोड में रहते हैं। एक साथ चुनाव होने पर उन्हें चुनाव प्रचार से अधिक ध्यान शासन और नीति निर्माण पर केंद्रित करने का अवसर मिलेगा।
मतदान प्रतिशत में वृद्धि की संभावना: कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि एक साथ चुनाव होने पर मतदाता एक ही बार में लोकसभा और विधानसभा दोनों के लिए वोट डाल सकेंगे, जिससे मतदान प्रतिशत बढ़ सकता है।
वन नेशन वन इलेक्शन के विपक्ष में तर्क (चुनौतियाँ और नुकसान):
संवैधानिक और कानूनी चुनौतियाँ: लोकसभा और विधानसभाओं का कार्यकाल संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों द्वारा निर्धारित होता है। एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान के कई अनुच्छेदों (जैसे 83, 85, 172, 174 और 356) और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में महत्वपूर्ण संशोधन करने होंगे।
अविश्वास प्रस्ताव और मध्यावधि चुनाव: यदि किसी केंद्र या राज्य सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है या कोई अन्य कारण से सरकार गिर जाती है और मध्यावधि चुनाव आवश्यक हो जाते हैं, तो एक साथ चुनाव का चक्र कैसे बनाए रखा जाएगा? यह एक बड़ी चुनौती है।
क्षेत्रीय दलों और मुद्दों पर प्रभाव: आशंका यह है कि एक साथ चुनाव होने पर राष्ट्रीय मुद्दे राज्य-स्तरीय मुद्दों पर हावी हो सकते हैं। इससे क्षेत्रीय दलों के लिए अपने स्थानीय एजेंडे पर ध्यान केंद्रित करना मुश्किल हो सकता है और मतदाताओं का वोट राष्ट्रीय मुद्दों से प्रभावित हो सकता है।
लॉजिस्टिकल चुनौतियाँ: देश भर में एक साथ चुनाव कराने के लिए भारी संख्या में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें (EVMs), VVPAT मशीनें, मतदानकर्मी और सुरक्षा व्यवस्था की आवश्यकता होगी, जिसका प्रबंधन एक बड़ी लॉजिस्टिकल चुनौती होगी।
संघीय ढाँचे पर प्रभाव: कुछ आलोचकों का तर्क है कि यह कदम राज्यों की स्वायत्तता को कम कर सकता है और एक प्रकार से संघीय ढाँचे को कमजोर कर सकता है।
राजनीतिक सहमति का अभाव: इस बड़े बदलाव के लिए सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति बनना आवश्यक है, जो वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में काफी मुश्किल प्रतीत होता है।
वर्तमान स्थिति:
यह विचार नया नहीं है। विधि आयोग (Law Commission) ने पहले भी इस पर रिपोर्ट दी है। हाल के वर्षों में इस पर चर्चा फिर से तेज हुई है और सरकार ने इसकी व्यवहार्यता का अध्ययन करने और सिफारिशें देने के लिए पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन किया है। समिति ने विभिन्न हितधारकों से राय मांगी है और अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी है।
निष्कर्ष:
वन नेशन, वन इलेक्शन एक जटिल मुद्दा है जिसके संभावित लाभ और चुनौतियाँ दोनों हैं। यह निश्चित रूप से चुनावी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने और खर्चों को कम करने का एक तरीका हो सकता है, लेकिन इसके लिए महत्वपूर्ण संवैधानिक, कानूनी और लॉजिस्टिकल बदलावों की आवश्यकता होगी। साथ ही, क्षेत्रीय राजनीति, संघीय ढाँचे और लोकतंत्र की भावना पर इसके संभावित प्रभावों पर भी गहन विचार-विमर्श की आवश्यकता है। यह तभी सफल हो सकता है जब इस पर व्यापक राजनीतिक सहमति बने और सभी चुनौतियों का व्यवहार्य समाधान खोजा जाए। इसका भविष्य काफी हद तक इन चुनौतियों से निपटने और राजनीतिक इच्छाशक्ति पर निर्भर करेगा।
वन नेशन, वन इलेक्शन: एक देश, एक चुनाव का विचार और इसका भविष्य
